गुरुवार, 1 अगस्त 2024

माँ, तुमने बहुत रुलाया है

माँ तुमने बहुत सताया है, माँ तुमने बहुत रुलाया है।

 

गोदी में था मैं, आँचल से तुमने माथा मेरा पोंछा था

मुझे निहारती मुस्काई थीं, फिर न जाने क्या सोचा था

एक उबासी ली थी मैंने, नींद में आँखें मूँदी थीं

चिल्ला कर जागा था, सपने में इक बिल्ली कूदी थी

शेर है तू, बिल्ली से डरता है!तुमने ललकारा था

कभी नहीं भूलूँगा माँ जो उस दिन रूप तुम्हारा था

 

बड़ा हुआ तो देखा, माँ, तुम औरों-जैसी ना थीं

स्कूल के बाक़ी बच्चों की तो कितनी सुंदर माँ थीं

उनके मँहगे कपड़ों से कितनी ख़ुश्बू आती थी

इंगलिश में गिटपिट करती थीं, गाड़ी में जाती थीं

तुम तो बस उस एक-ही कपड़े में अक्सर आती थीं

इंगलिश क्या, हिन्दी बातों से भी तुम सकुचाती थीं    

    

हुई पढ़ाई, मिली नौकरी, जब मैं घर पर आया

ख़ुशी से तुमने चूमा लेकिन नैन नीर भर आया

भगवान ने मेरी सुन ली,‘ धीरे से बोली थीं तुम

बाबूजी की फ़ोटो के आगे फिर रोई थीं तुम

रोना-धोना छोड़-भी माँ, पहली तनख़्वाह आने दे

ढेर लगा दूँगा तेरे आगे कपड़े-गहनों के

 

शान से बोला था मैं, ‘माँ, जब तू सज कर आएगी

तेरी सकुचाहट भी अपने-आप निकल जाएगी

क्या बतलाऊँ जब तू सादे कपड़ों में आती है

अपने पर और तुझ पर मुझको बड़ी शर्म आती है

कई बार तुझको ले कर यारों ने बड़ा चिढ़ाया है

तूने अनजाने में माँ मुझको बहुत सताया है

 

सन्न रह गई थीं तुम, कुछ देर तो कुछ न बोलीं

फिर अपराधी जैसे स्वर में तुमने गुत्थी खोली

हृदय फट गया ग्लानि से जब सारा क़िस्सा जाना

तेरी तपस्या के आगे हर दर्द हुआ बचकाना

अपनी नासमझी पर मुझको उस दिन रोना आया

भाग्यवान हैं वो जिन पर रहता है माँ का साया

 

समझ गईं तुम मेरी हालत, बोलीं, ‘ये क्या पगले?

आज का दिन है बड़ी ख़ुशी का, आज तो जी भर हँस ले

मैं क्या पशुओं की भी माँ, बच्चों की ख़ातिर जीती है

यही जगत् का सच है बेटा, यही जगत् की रीति है

माँ से लिपट गया मैं, बोला सब तूने सच बतलाया है 

माँ मैंने बहुत सताया है, माँ मैंने बहुत रुलाया है।

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