छल कपट लोभ से व्याकुल मन
जब तड़प-तड़प अकुलाता है
माँ ब्रह्मचारिणी का वर्णन
जग आलोकित कर जाता है!
माँ ब्रह्मचारिणी! माँ ब्रह्मचारिणी!
वर्षों जिसने उपवास किया
भोजन क्या पानी भी न लिया
बस एक लगन में शंकर की
जिसने जप-तप और त्याग किया
उस ब्रह्मचारिणी के आगे
मस्तक अपना झुक जाता है
माँ ब्रह्मचारिणी! माँ ब्रह्मचारिणी!
लम्बा जीवन, सुखमय जीवन
हो लोभहीन सबका जीवन
ये श्वेत वस्त्र, ये जपमाला
जतलाते हैं सात्विक जीवन
माँ तुच्छ भेंट है शक्कर की
तुझको ये ही तो भाता है
माँ ब्रह्मचारिणी! माँ
ब्रह्मचारिणी!
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