बुधवार, 7 अगस्त 2024

दुर्गा रूप 3 - चन्द्रघन्टा

 

मुझे धन पा कर ना चैन मिला

मुझे बल पा कर ना चैन मिला

कहने को मुझको रूप मिला

पर मन अक्सर बेचैन मिला!

 

सन्तोष हुआ मन बैरी को

देखा जो रूपसी देवी को

माथे पे चन्द्र, सोने-सा रंग

जैसा ना कभी कहीं और मिला!

 

वो शेर के ऊपर बैठी हैं

काया में अद्भुत ज्योति है

दस हाथ हैं उनके, तीन नयन

मुस्कान है देती कष्ट भुला!

 

निर्भयता, धीरज और करुणा

मानव का है असली गहना

माँ चन्द्रघन्टा को देखा तो

यश से जीने का भेद खुला!

 

मिष्ट्टान्न समर्पित करते हैं

हम सब अब ये प्रण करते हैं

आध्यात्म, आत्मिक प्रगति से

कर देंगे हर प्राणी का भला!

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