ओला ऊबर दोऊ खड़े,
ड्राइवर
कहीं न जाय
बलिहारी सरकार की,
जो
मेट्रो रही चलाय।
बुड्ढा
खड़ा बजार
में, माँगे
सबकी ख़ैर
मोटर-स्कूटर हैं बहुत,
दब
ना जाए पैर।
मोबाइल छीन के हाथ से,
ले
गए चोर उड़ाय
रोवन
से कुछ होत ना, दूजा
फ़ोन ही लायँ।
पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ,
पण्डित
भया न कोय
व्हाट्स ऐप को जो पढे़,
उसी
की चरचा होय।
मित्रो
बरगर खाइए, मन
का आपा खोय
चूल्हा-चक्की से बचे,
बच्चे
भी ख़ुश होय।
मित्रो
बकबक कीजिए, ऐसी
जुगत लगाय
असली मुद्दे से सबका,
ध्यान भटकता जाय
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